Monday, September 7, 2009

BADLI BADLI SI

कुछ बदली बदली सी हूँ मैं
क्या मैं ही हूँ, मैं

क्या मेरी
हँसी, मैंने हँसी
या फ़िर दुसरो की हँसी में,मैं हँसी

क्यूँ मेरी समझ बदल गयी
क्यूँ दूजो को समझने के लिए
मैं उन्ही की समझ मैं ढल गयी

हर राह जो मैंने चुनी
क्यूँ वो इधर उधर निकल गयी

अपनी नज़र को कर नज़रंदाज़
क्यूँ मैं दूजो की ही नज़र पे अटक गयी

क्यूँ दुसरो की मानते मानते ....अपनी ही राह भटक गयी....

2 comments:

  1. kya hua , kyu hua , nahi pata
    par han sach
    mai badal gayi ||

    ReplyDelete
  2. हाँ, आज वाकई आप बदली-बदली सी हो .

    ReplyDelete