Tuesday, May 26, 2009

चल तू सीधा
सीधा सीधा चल तू
बस सीधा बन के ना चल तू
एक के बाद दूजा होगा
हर पल मैं कोई लोचा होगा

बच्चे थे तो भी चलते थे
सीधा सीधा चलने की कोशिश में
कभी गिरते
कभी फिसलते थे
पर दुनिया से सीधा पथ तो
न झेला जाता है

सच की शिक्षा देने वाला ही
जब झूठ पर झूठ गाता है
जब चोकी मैं बैठा
हवलदार ही हर पल पैसे खाता है
जब खुद को दोस्त कहने वाला
सिर्फ काम से ही आता है
जब हर पल एक और नए धोके का
डर सताता है
जब कोई अपना भी
अनजान से जायदा नही बन पता है

तब वो बच्चा क्यूँ गिर जाता है


सीधा बन्ने की कोशिश मैं
सीधा चलना भूल जाता है
उन जैसे लोगों की

क्यूँ वो गिनती बढ़ता है
क्यूँ वो ये भूल जाता है
की
सीधा चलने के लिए हर किसी को
सीधा पथ नही मिल पता है


कभी कभार एक झूठ १०० सच से बढ़कर हो जाता है
क्यूंकि वो सीधे पथ के लिए बोला जाता है .....

Sunday, May 17, 2009

jhulfe

वो कोन है जो चला जा रहा है
दूर जा कर भी पास आ रहा है
देखा था उसे २ साल पहले
मगर आज भी अनजान नज़र आ रहा है

काला चस्मा लगाए
बाल लहरा रहा था
देखो वो झुल्फी
भाव खा रहा था

उनकी झुल्फो मैं खोए
हम रुक ना पाए
और अपने बालों पर रोज़ नए- नए शैंपू लगाये
उसके बाल तो भाढे जा रहे थे
मगर जाने क्यूँ
हमारे झडे जा रहे थे

बालों को तो हमने
जाने केसे संभाला
मगर बाकि तो हम मरे जा रह थे

इतने मैं आया भूरे बालों का जमाना
उसके साथ साथ हमने भी कलर लगाने का ठाना
मगर भूरे बालो को भूरी रंगत ना भाई
बीना बात मैं जेब कटवाई

शैंपू का कहर तो वो सह चुके थे
रंग के बाद तो
बाल मेरे अब २-४ ही रह चुके थे .......

Thursday, May 14, 2009

गलती थी खुद की
क्यूँ दूजो पर थोपी
क्यों ना माना कभी
की खुद ही गलत थी

गलती थी खुद की
क्यूँ फिर भी मैं रोई
क्यों उन आंसुओ ने
अहमियत खोई

खुद ही के नाटक थे
खुद का ही ड्रामा
हर पल बस था एक और नया बहाना

भागी थी खुद से
पर अब गिर पड़ी हूँ
मंजिल तो छोडो
राहों को तरस रही हूँ
गलती जो की
अब रो रही हूँ
दूजो को छोडो ....खुद को खो रही हूँ